16/10/2025
**"कहीं बहुत देर न हो जाए..."**
आजकल जब भी मेरी बात कुछ माता-पिता या युवाओं से होती है, एक सवाल मन में बार-बार उठता है —
**क्या हम अपनी ही बनाई अपेक्षाओं के बोझ तले अपने बच्चों का भविष्य दबा रहे हैं?**
माता-पिता अपनी संतान की शादी के लिए कुछ ऐसी 'परफेक्ट' ज़िंदगी तलाशते हैं, जो असल में सिर्फ कहानियों में ही मिलती है।
**लड़की के लिए** चाही जाती है —
सुंदरता, सादगी, शिक्षा, नौकरी, खाना बनाना, घर सँभालना, बच्चों को पालना... और फिर भी सब कुछ मुस्कुराते हुए करना।
**लड़के के लिए** माँगा जाता है —
IAS, डॉक्टर, इंजीनियर, या कम से कम 50 लाख से ऊपर सालाना कमाने वाला बिजनेसमैन।
ऊँचा कद, सुंदर चेहरा, कार, घर, खेत, संपत्ति... और शादी के बाद विदेशी हनीमून भी हो।
इन **"लिस्टों"** की वजह से जो हो रहा है, उस पर ध्यान दीजिए —
👉 लड़कियाँ 30–38 साल तक पहुँच रही हैं बिना विवाह के।
👉 लड़के 32–40 साल की उम्र तक अकेले हैं।
👉 शादी टलती जा रही है और समय खिसकता जा रहा है।
**नतीजा?**
* शादी देर से होती है, तो संतान सुख में देरी या कठिनाई।
* माता-पिता बनते-बनते उम्र ढल जाती है।
* जब बच्चे छोटे होते हैं, तब माता-पिता बूढ़े हो चुके होते हैं।
* और एक समय ऐसा आता है जब न तो खेलने की ताकत होती है, न सिखाने का धैर्य।
?? क्या आपने सोचा है —
जब आप बच्चों के "परफेक्ट मैच" का इंतज़ार कर रहे होते हैं, तब कहीं न कहीं उनकी हँसी, उनका परिवार, उनका बचपन छिन रहा होता है?
अब रुकिए, सोचिए और जागिए।
शादी कोई व्यापार नहीं, जीवनसाथी का मिलन है।
अपेक्षाएं रखें, पर इंसानी हद में।
बच्चों की पसंद, समय और भावनाओं का सम्मान करें।
"परफेक्ट" की चाह में कहीं "सही" को मत खो दीजिए।
आइए, समाज के इस **अदृश्य दबाव** को थोड़ा कम करें।
अपने बच्चों को समय पर, स्नेह से और समझदारी से आगे बढ़ाएं।
क्योंकि वक्त निकल जाने के बाद **सिर्फ पछतावा ही बचता है**...
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