Adhyatmik Anubhuti

Adhyatmik Anubhuti We help you in organizing Religious events like Shrimad Bhagwat Katha, Shri Ram Katha, Shiv katha, Nani Bai ka Mahira, Bhajan Sandhya and others.

हम "अध्यात्मिक अनुभूति" के माध्यम से आपके द्वारा संकल्पित धार्मिक अनुष्ठानो के समस्त व्यवस्थाओ हेतु आपके सहयोग के लिए तत्पर हैं । विभिन्न अनुष्ठानो के अनुरूप वर्णित विधान को ध्यान में रखते हुए हमारी सेवाए आपके आयोजन को इच्छानुसार फलदायी स्वरुप के साथ संपन्न कराने के लिए संकल्पित है ।

राधिका जी का जन्म--- राधिका जी का जन्म कैसे हुआ?? वैसे तो राधिका जी के जन्म के सम्बंध में अनेक कथाएं शास्त्रों में आती ह...
02/01/2024

राधिका जी का जन्म--- राधिका जी का जन्म कैसे हुआ??
वैसे तो राधिका जी के जन्म के सम्बंध में अनेक कथाएं शास्त्रों में आती हैं लेकिन ऐसा माना जाता है कि आज से करीब पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट "रावल गांव" में भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल १२ बजे और सोमवार के दिन पिता वृषभानु एवं माता कीर्तिदा की पुत्री के रूप में श्री राधिका जी ने जन्म लिया... लेकिन कुछ दिन बाद उनके पिता महाराज वृषभानु जी ने वृंदावन में ही व्रषभानु पुरा गांव बसाया जिसे आज बरसाना के नाम से जाना जाता है. वर्तमान में यही बरसाना धाम राधा जी की गृह भूमि है. यही वह पवित्र भूमि है जहां श्री राधा जी ब्रज की अधीश्वरी के रुप में पूजी जाती है.श्री राधा रानी के जन्म के संबंध में कहा जाता है कि राधिका जी ने भगवान श्री कृष्ण की भांति अपनी माता के पेट से जन्म नहीं लिया..बल्कि उनकी माता ने अपने गर्भ में केवल "वायु" को ही धारण किया हुआ था तब देवी योग माया कि प्रेरणा से उन्होंने केवल वायु को ही जन्म दिया.परन्तु वहाँ स्वेच्छा से श्री राधा जी प्रकट हो गई...श्री राधा रानी जी कलिंदजा कूलवर्ती निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतरित हुई थी.जिस समय श्री राधिका जी का जन्म हुआ उस समय सम्पूर्ण दिशाए निर्मल हो उठी.तब महाराज वृषभानु और महारानी कीर्तिदा ने अपनी पुत्री राधिका जी के कल्याण की कामना से दो लाख उत्तम गौए ब्राह्मणों को दान की..राधिका जी के जन्म की दूसरी कथा इस प्रकार है कि एक दिन जब वृषभानु जी सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तब उन्हें एक बालिका "कमल के फूल" पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने पुत्री के रूप में अपना लिया.तब राधिका जी का अभिषेक किया गया जिस समय श्री राधिका जी का अभिषेक किया गया उस समय सभी देवी-देवताओं ने वहां पुष्प वर्षा की और राधा जी को स्वर्ग के सिंहासन पर बिठाया लेकिन स्वर्ग के सिंहासन पर आसित करते समय सभी देवताओं के मन में ये विचार आया कि राधा रानी तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की अधीश्वरी देवी हैं तो फिर उन्हें केवल सोलह कोस में फैले वृंदावन का ही आधिपत्य सौपनें की क्या आवश्यकता है.तब काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि बैकुंठ से भी कई गुना अधिक महत्व तो मथुरा का होगा....और मथुरा से भी अधिक महत्व वृंदावन का होगा..राधिका जी आयु में श्रीकृष्ण से ग्यारह माह बडी थीं. लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आँखे नहीं खोली है.इस बात से उन्हें बड़ा दुःख हुआ लेकिन कुछ समय पश्चात जब नन्द बाबा कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले कृष्ण के साथ वृषभानु जी के घर आईं तब वृषभानु जी और कीर्ति जी ने उनका स्वागत किया तब यशोदा जी कान्हा जी को गोद में लिए राधाजी के पास आती है.और जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है.तब राधा जी पहली बार अपनी आँखे खोलती है.अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए ,वे एक टक कृष्ण जी को देखती ही रहती हैं...अपनी प्राण प्रिय राधिका को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर श्री कृष्ण स्वयं अत्यधिक आनंदित होते है. एक बार जब राधाजी से श्री कृष्ण ने पूछा कि हमारे साहित्य में तुम्हारी क्या भूमिका होगी. तो राधाजी ने कहा मुझे कोई भूमिका नहीं चाहिए मैं तो सदा आपके पीछे ही रहूंगी।

 #राधाजी_का_काजलआज ललिता जू प्रिया जू का श्रृंगार कर रही हैं जब श्रृंगार पूर्ण हो गया तो प्रिया जू को दर्पण सेवा करायी व...
29/12/2023

#राधाजी_का_काजल

आज ललिता जू प्रिया जू का श्रृंगार कर रही हैं जब श्रृंगार पूर्ण हो गया तो प्रिया जू को दर्पण सेवा करायी विशाखा जू ने किशोरी जू ने जब अपने मुख चन्द्र को दर्पण मैं निहारा तो ललिता जू की ओर देखने लगी।
आज ललिता जू ने श्रृंगार मैं त्रुटि कर दी थी ‘ललिते आज आप काजल लगानो भूल गयी‘ ललिता जू बोली ‘लाडो जब काजल श्यामसुंदर की याद मैं आँखन सौ बह ही जानो है तो लगावे को लाभ हू कहा है, आप कह रही हो तो लगाय दुगीं नेक आँख तो बन्द करो‘ प्रिया जू ने आँख बन्द की ललिता जू ने ईशारे से ठाकुर जी को अन्दर बुला लिया ओर प्रिया जू के सामने ठाकुर जी को खड़ा कर दिया।
किशोरी जू ने जब नेत्र खोले ओर प्राणवल्लभ नन्दनन्दन को सामने पाया तो ह्रदय प्रैम रस से भर गया रोम-रोम से दिव्य प्रेमरस स्फुरित होने लगा किन्तु अगले ही पल किशोरी सहज हो रोष प्रकट करते हुऐ ललिता जू से बोली ‘आपने यह काह कियो मैया कि आज्ञा को हू भय नाय रह्यो आपकू जो आप इनकू महल के अन्दर ले आयीं
‘ललिता जू हाथ जोड़ के बोली ‘लाडो आप दोऊन को हाल हमसौ देखो नाय जा रह्यो यहाँ आप व्याकुल ओर श्यामसुंदर ने तो भोजन पानी सब त्याग दियो आप ही बताओ हम केसे ये सब सहते।
‘किशोरी जू अब कृत्रिम रोष प्रकट करते हुऐ बोली ‘तो या सबसौ मेरे काजल कौ का सम्बन्ध, काजल की डिबिया तो ले आयो। ‘ललिता जू हाथ जोड़ के बोली ‘लाडली जू इनसौ बडो कोई कारो है का या संसार मैं श्यामसुंदर कू आज अपने नैनन मैं बसाय लेयो काजल के संग-संग एक और लाभ हू मिलेगो आपकू, अब काहू कि नजर हूँ नाय लगेगी।
नन्दनन्दन ने प्रिया जू का दर्शन किया और वचन लिया कि वह उनको दर्शन देने के लिये अटारी पर जरूर आयेगी तो प्रिया जू ने भी ठाकुर जी को थोड़ा झिडका कि आप इतने महल के चक्कर लगाओगे तो यही होगा। दोनों ने एकदूसरे के परस्पर दर्शन किये।
यह ब्रज की लीला है। बिना लाडली जू के दर्शन किये ठाकुर जी का कलेवा भी नहीं होता।

इत बनमाल उत भृकुटि विशाल नथइत मोर पंख उत बैंदी भाल दीना है।।इत पीताम्बर उत चुनरी अनूप रंगइत श्याम रंग उत गौर रंग भीना है...
25/12/2023

इत बनमाल उत भृकुटि विशाल नथ
इत मोर पंख उत बैंदी भाल दीना है।।
इत पीताम्बर उत चुनरी अनूप रंग
इत श्याम रंग उत गौर रंग भीना है।।
इत सो बजावे ताल बाँसुरी अनूप राग
उत सो बजे पग नूपुर झन झीना है।।
जोड़ी अनूठी लागे उपमा सब झूठी
राधा सोने की अंगूठी कृष्ण नीलम नगीना है।।

मानसी गंगा पार पै ठाड़े जुगल किशोर ।ब्यार चलै अचरा उड़ै पीतांबर को छोर ।।
14/12/2023

मानसी गंगा पार पै ठाड़े जुगल किशोर ।
ब्यार चलै अचरा उड़ै पीतांबर को छोर ।।

परम पूज्य श्रीराधाबाबा द्वारा सन् १९३८ ई० में ईडन गार्डेंस कलकत्तामें दिये गये प्रवचनका अंश...          ‘हम भगवान्‌के है...
09/12/2023

परम पूज्य श्रीराधाबाबा द्वारा सन् १९३८ ई० में ईडन गार्डेंस कलकत्तामें दिये गये प्रवचनका अंश...

‘हम भगवान्‌के हैं और भगवान् हमारे हैं’— इस अपनेपनके सम्मुख योग्यता, पात्रता, अधिकार आदि कुछ भी महत्त्व नहीं रखते । यह सम्पूर्ण साधनोंका फल है ।

छोटा-सा बच्चा अपनेपनके बलपर, आधीरातमें रोनेपर सारे घरको नचाता है । सारे घरवाले उठकर उसके हठको पूरा करते हैं । इसलिये, जब हम भगवान्‌के अंश हैं, तो हमें अपनी योग्यताकी ओर कदापि नहीं देखकर मात्र भगवान्‌के साथ अपनेपनको ही देखते रहना चाहिये ।

भगवान कहते है जब तू “ममैव” — मेरा ही है — तो फिर चिंता करके अथवा _अपने साधन द्वारा शुद्ध होनेका मिथ्या प्रयास करके, तू अपराध ही करता है ।_ यह तेरा अभिमान है कि तू जैसा है, जो है — वैसा ही मेरे पास दौड़ता हुआ न आकर, शुद्ध—पवित्र होकर मेरे पास आना चाहता है । यह तेरा अभिमान मेरे प्रति अविश्वासमूलक है । जब मैं कहता हूँ कि तू ‘ममैव’, मात्र मेरा ही है, फिर मेरे प्रति पूरा विश्वास, भरोसा नही रखना — तेरा निश्चय ही मेरे प्रति अपराध है । तुझमें अपने दोषोंको लेकर चिंता करना वास्तवमें अपने बलके अभिमानके ही कारण है । यह नियम है कि दोषोंको मिटानेमें अपनी सामर्थ्य मालुम होनेसे ही उनको मिटानेकी चिंता होती है । यदि हममें दोष मिटानेकी सामर्थ्यका अभिमान सर्वथा नही हो, तो हम भगवान्‌को पुकारेंगे और अधिक बलपूर्वक भगवान्‌से अपने सम्बन्धकी स्मृति करके उनसे ही चिपकेंगे । जैसे, छोटे बालकके पास कुत्ता आ जाये — वह अपनेमें जब कुत्तेको भगानेकी सामर्थ्य नही देखता, तो रोकर माँको ही पुकारता है । मेरा अंश होकर तू चिंता करता है, तो कलंक आता है मुझपर । तू इनकी चिंता मत कर । इनकी चिन्ता मैं करूँगा । जब तू मेरा है, तो अपना सब भार, शोक, चिंता मुझपर छोड़कर निर्भर, निश्चिंत, निःशोक हो जा ।

देऔ दान हमारो, किशोरी राधे।। हम गहवर के हैं रखवैया, बरसानो सुसरारो।अद्भुत रूप बदन नवयौवन, नैंनन काजर कारो। बहुत दिना तुम...
29/11/2023

देऔ दान हमारो, किशोरी राधे।।
हम गहवर के हैं रखवैया, बरसानो सुसरारो।
अद्भुत रूप बदन नवयौवन, नैंनन काजर कारो।
बहुत दिना तुमने हम टारे, अब नाँय होय किनारो।
पायन पायल नूपुर राजैं, घाघर घूम घुमारो।
बहुत दिना की लाग लगी है, जबते रूप निहारो।
रसिक रीति रति गांठ जोरलेओ, तबही परै सहारो।
मटकी खोल दिखादेओ प्यारी, चाखें दही तिहारो।
'टोडर' श्याम बडो उतपाती, कान्हा बंशी बारौ।।

श्री गौरव गोस्वामी (टोडर गोस्वामी)
नन्दगाँव जी द्वारा रचित।।

ध्यान मूलं गुरु मूर्ति , पूजा मूलं गुरु पदम् मन्त्र मूलं गुरु:वाक्यं , मोक्ष मूलं गुरु कृपाश्री गुरु चरण कमलेभ्यों नमः 👏...
26/11/2023

ध्यान मूलं गुरु मूर्ति , पूजा मूलं गुरु पदम्
मन्त्र मूलं गुरु:वाक्यं , मोक्ष मूलं गुरु कृपा

श्री गुरु चरण कमलेभ्यों नमः 👏🏻👏🏻👏🏻

गुरु में संसार समाया है इनका ही आशीष पाया है
प्रभु ने खुद से भी ऊंचा, गुरु का स्थान बनाया है
गुरुवर तो ज्ञान के सागर हैं,
इनके क़दमों मे ही जन्नत है,
इनकी वाणीं मे ही अम्रत है
इनके आशीर्वाद मे ही परम सुख है

गुरु सो प्रीतिनिवाहिये , जेहि तत निबहै संत।
प्रेम बिना ढिग दूर है , प्रेम निकट गुरु कंत।

सभी संत भगवानों के श्री चरणों में दंडवत प्रणाम 👏🏻

👏🏻 जय जय श्री सीता राम

""आज का दिव्य सन्देश" "जिस प्रकार यह संसार अनंतबीजों से भरा हुआ है, उसमें कुछ हमारे काम के हैं कुछ नहीं,।इसी प्रकार यह म...
21/11/2023

""आज का दिव्य सन्देश" "जिस प्रकार यह संसार अनंत
बीजों से भरा हुआ है, उसमें कुछ हमारे काम के हैं कुछ नहीं,।इसी प्रकार यह मन का क्षेत्र भी अनंत विचार रूपी बीजों से भरा पड़ा है, जिनमें कुछ विचार हमारे काम के हैं, कुछ काम के नहीं। इन्हे पहचानने के लिए हमें अंतर्मन में झांकना होगा।जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि किरपा आप पर सदैव बनी रहें।

14/11/2023
*_केवल छज्जों और चौबारों पर ही नहीं, आस्था का एक दीप हमारे रिश्तों की मुंडेर पर भी आजीवन जलता रहे,   इसी भावना के साथ......
12/11/2023

*_केवल छज्जों और चौबारों पर ही नहीं, आस्था का एक दीप हमारे रिश्तों की मुंडेर पर भी आजीवन जलता रहे, इसी भावना के साथ...._*

*दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं*

अहोई अष्टमी 5 नवम्बर 2023(रविवार)सन्तान प्राप्ति एवं पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए विशेष स्नान.......जो राधा कुंड नहाई, पुत...
05/11/2023

अहोई अष्टमी
5 नवम्बर 2023(रविवार)

सन्तान प्राप्ति एवं पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए विशेष स्नान.......

जो राधा कुंड नहाई, पुत्र रतन जन पाई

श्री वृषभान कुमारि जूं, अष्ट सखिन के झुंड डगर बुहारत सांवरौ जै जै राधाकुंड। ऐसौ ही कुछ नजारौ ब्रज क्षेत्र के प्रमुख धाम राधाकुंड कौ। मथुरा नगरी से 26 किलोमीटर दूर राधाकुंड का अलग ही धार्मिक महत्व है। मन में पुत्र रत्न की आस, ऊपर से राधा जी पर अटूट विश्वास, कि अबकी बार राधा कुंड में स्नान करने से मेरी गोद जरूर भरेगी। इसी आस्था के साथ कार्तिक मास की अष्टमी (अहोई अष्टमी) को 5 नवम्बर 2023(रविवार) की रात्रि में 12 बजे से) राधा कुंड में हजारों दंपति स्नान कर पुत्र रत्न प्राप्ति की कामना करेंगे। जो राधा कुंड नहाई, पुत्र रतन जन जाई। ऐसा ही इतिहास रहा है अहोई अष्टमी पर होने वाले महा स्नान का। कार्तिक मास की अष्टमी के दिन राधा कुंड में स्नान करने वाली सुहागिनों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इसके चलते यहां कल रात स्नान किया जाएगा। इसलिए राधाकुंड पर देश से नहीं अपितु विदेश भी श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि कार्तिक मास की अष्टमी को वे दंपति जिन्हें पुत्र प्राप्ति नहीं हुई है वे निर्जला व्रत रखते हैं और अष्टमी की रात्रि को पुष्य नक्षत्र में रात्रि 12 बजे से राधा कुंड में स्नान करते हैं। इसके बाद सुहागिनें अपने केश खोलकर रखती हैं और राधा की भक्ति कर आशीर्वाद प्राप्त कर पुत्र रत्न प्राप्ति की भागीदार बनती हैं। मान्यता है कि आज भी पुण्य नक्षत्र में राधा जी और कृष्ण रात्रि 12 बजे तक राधाकुंड में अष्ट सखियों संग महारास करते हैं। इसके बाद पुण्य नक्षत्र शुरू होते ही वहां स्नान कर भक्ति करने वालों को दोनों आशीर्वाद देते हैं और पुत्र की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता है कि राधा जी ने उक्त कुंड को अपने कंगन से खोदा था इसलिए इसे कंगन कुंड भी कहा जाता है।श्रीकृष्ण ने राधा जी को दिया था वरदानकथानकों के अनुसार श्रीकृष्ण गोवर्धन में गौचारण लीला करते थे। इसी दौरान अरिष्टासुर ने गाय के बछड़े का रूप धरके श्रीकृष्ण पर हमला किया। इस पर श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। तब राधारानी ने श्रीकृष्ण को बताया कि उन्होंने अरिष्टासुर का वध तब किया जब वह गौवंश के रूप में था इसलिए उन्हें गौवंश हत्या का पाप लगा है। इस पाप से मुक्ति के उपाय के रूप मेंश्रीकृष्ण अपनी बांसुुरी से एक कुंड (श्याम कुंड) खोदा और उसमें स्नान किया। इस पर राधा जी ने श्याम कुंड के बगल में अपने कंगन से एक और कुंड (राधा कुंड) खोदा और उसमें स्नान किया। स्नान करने के बाद राधा जी और श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। महारास में दोनों कई दिन रात तक लगातार रास रचाते सुधबुध खो बैठे। महारास से प्रसन्न होकर राधा जी से कृष्ण ने वरदान मांगने को कहा। इस पर राधा जी ने कहा कि हम अभी गौवंश वध के पाप से मुक्त हुए हैं। वे चाहती हैं कि जो भी इस तिथि में राधा कुंड में स्नान करे उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो। इस पर श्री कृष्ण ने राधा जी को यह वरदान दे दिया। इसका उल्लेख ब्रह्म पुराण व गर्ग संहिता के गिर्राज खंड में मिलता है। उल्लेख है कि महारास वाले दिन कार्तिक मास की अष्टमी (अहोई अष्टमी) थी। तभी से इस विशेष तिथि पर पुत्र प्राप्ति को लेकर दंपति राधाकुंड में स्नान कर राधा जी से आशीर्वाद मांगते हैं।पूर्व में अरीध वन था राधाकुंड का नाम। राधा कुंड नगरी कृष्ण से पूर्व राक्षस अरिष्टासुर की नगरी अरीध वन थी। बताया जाता है कि अरिष्टासुर अति बलवान व तेज दहाड़ वाला था। उसकी दहाड़ से आसपास के नगरों में गर्भवती महिलाओं के गर्भ गिर जाते थे। इससे ब्रजवासी खासे परेशान थे। इस कारण श्री कृष्ण ने उसका वध करने को लीला रची थी।
Courtesy: Shri Harish thakurji

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