Bajrangi Bhajan And Bhakti Mandal

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19 जनवरी..इस पृथ्वी पर, और इस देह में, रजनीश के अंतिम दिन किसी नियति के आवेग में 19 जनवरी 1990 की तारीख़ की ओर खिंचे चले...
19/01/2025

19 जनवरी..

इस पृथ्वी पर, और इस देह में, रजनीश के अंतिम दिन किसी नियति के आवेग में 19 जनवरी 1990 की तारीख़ की ओर खिंचे चले गए थे।

4 जनवरी 1987 को वे अमेरिका और विश्व-यात्रा से लौटकर अपने जीवन का अंतिम अंक खेलने फिर पुणे पहुँचे। वही पुणे, जहाँ वे आचार्य-वेश में कितनी बार आए थे, गीता पर बोले थे। ​फिर जहाँ वे 1974 में अपना आश्रम बसाने आए और आठ वर्षों तक यहीं रहे। फिर जिसे छोड़कर अमेरिका गए तो ऐसे कि अब फिर आना न होगा। उसी पुणे में वे एक अंतिम बार फिर लौटकर आए थे।

अंत के इन तीन वर्षों में रजनीश ने कोई चार से पाँच बार नाम बदले, तीन नई ध्यान-विधियाँ आविष्कृत कीं, एक इनर सर्कल बनाया, पूरे आश्रम को री-डिज़ाइन करवाया और उसे स्याह काले रंग से पुतवा दिया। उन्होंने आश्रम के समीप स्थित नाला पार्क को ज़ेन गार्डन की तरह विकसित करवाया, जो कालान्तर में ओशो तीर्थ कहलाया और जहाँ रजनीश की एक मूर्ति स्थापित की गई। इसी कालखण्ड में रजनीश ने स्वयं को गौतम बुद्ध की चेतना का वाहक घोषित कर सनसनी फैलाई और हमेशा की तरह आलोचना और प्रवाद के पात्र बने।

इस कालावधि में रजनीश मुख्यतया ज़ेन पर बोले। मानो चराग़ की आख़िरी लौ त्वरा से फड़फड़ाई हो, उनके डिस्कोर्स निरंतर लम्बे होते चले गए। 4 फ़रवरी 1989 को हुआ एक डिस्कोर्स तो पूरे 4 घंटे 6 मिनट चला। बाद में रजनीश ने कहा कि मेरा समय का बोध क्षीण हो गया है, इसलिए बोलता चला गया। शायद किसी दिन पूरी रात बोलता रहूँ और सुबह हो जाए।

इन वर्षों में रजनीश के द्वारा दिए डिस्कोर्स से 48 नई किताबें बनकर तैयार हुईं और ज़ाहिर है वो तमाम अंग्रेज़ी में हैं।

उन्होंने अपनी कुछ पुरानी हिन्दी किताबों के नए संस्करण भी निकाले और उनमें बड़े संकेतपूर्ण उपशीर्षक जोड़ दिए, जैसे- 'सुन सको तो सुनो, कुछ देर और पुकारूंगा, फिर चला जाऊँगा...'

इन्हीं वर्षों में रजनीश ने अपने नाम के साथ जुड़ी भगवान उपाधि को विदा कर दिया। ज़ेन पर उस समय चल रही प्रवचनामालाओं में अकसर मास्टर के लिए ओशो शब्द का प्रयोग होता था। इससे प्रेरित होकर 15 सितम्बर 1989 को उन्होंने ओशो नाम अपना लिया। भगवान, श्री और रजनीश तीनों तिरोहित हो गए। अब यह ओशो नाम ही रजनीश का पर्याय बन गया!

10 अप्रैल 1989 को रजनीश ने अपने जीवन का अंतिम सार्वजनिक व्याख्यान दिया। यह 'द ज़ेन मैनिफ़ेस्टो' पुस्तक में संकलित हुआ है। वह व्याख्यान इन शब्दों के साथ समाप्त हुआ था : "गौतम बुद्ध के अंतिम शब्द थे- सम्मासती। सम्यक् स्मृति। याद रखना कि तुम भी बुद्ध हो!" तब किसी ने नहीं सोचा था कि ये ख़ुद रजनीश के अंतिम सार्वजनिक शब्द साबित होंगे!

20 अगस्त 1989 को एक डेंटल सेशल के दौरान रजनीश ने कहा कि उन्हें अपनी आँखों के सामने नीले रंग में ओम की आकृति दिखाई दे रही है और यह संकेत है कि मृत्यु का क्षण अब आन पहुँचा है। उन्होंने उस आकृति का रेखाचित्र भी बनाया। इसके बाद उन्होंने आश्रम में अपनी समाधि बनवाने की तैयारियाँ शुरू करवा दीं। यह भी निर्देश दिया कि समाधि-पट्‌ट पर क्या लिखा जाएगा।

9 दिसम्बर 1989 को बम्बई में अज्ञात परिस्थितियों में रजनीश की अंतरंग सखी मा योग विवेक की मृत्यु हो गई। अंतिम आसक्ति छूट गई। अब रजनीश महासमुद्र के लिए अपने लंगर खोल देने को तैयार थे।

16 जनवरी 1990 : रजनीश आख़िरी बार बुद्धा हॉल में मेडिटेशन सेशन लेने आए।

17 जनवरी 1990 : वे केवल नमस्ते करने आए और तुरंत ही लौट गए। यह उनकी अंतिम नमस्ते थी।

18 जनवरी 1990 : रजनीश ने संदेशा भिजवाया कि वे अत्यंत बीमार हैं और हॉल में नहीं आ सकेंगे, किंतु वे अपने कक्ष में बैठे ध्यान कर रहे हैं और वहीं से साधकों का साथ देंगे।

19 जनवरी 1990 : बुद्धा हॉल में जब सब रजनीश की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब वह युगांतकारी ख़बर आई, जिसे सभी स्वीकार करने से डर रहे थे। नीलम,आनंदो, शून्यो, मनीषा की उपस्थिति में अमृतो ने घोषणा की–

'ओशो लेफ़्ट हिज़ बॉडी!'

एक क्षण का सन्नाटा… और फिर समूचे सभागार में आर्तनाद और चीत्कारें गूँज उठे। अमृतो ने संन्यासियों तक रजनीश का संदेश पहुँचाया कि उनके देहत्याग का शोक नहीं उत्सव मनाना है। यह रजनीश के संन्यासियों की सबसे कड़ी प्रतीक्षा थी।

दस मिनटों के लिए रजनीश का पार्थिव शरीर बुद्धा हॉल में लाया गया और वहाँ उसे उस जगह संन्यासियों के दर्शनार्थ रखा गया, जहाँ नियमित प्रवचन देते थे। संन्यासी संगीत की ध्वनि पर झूम रहे थे, डोल रहे थे और ओशो का उद्घोष कर रहे थे। कुछ मूर्ति की तरह अडोल बैठे अपने गुरु के अंतिम दर्शन कर रहे थे। कुछ की रुलाई फूट पड़ी। कुछ शोक से जड़ हो उठे।

मुळा-मुठा नदी के तट पर रजनीश का दाह-संस्कार किया गया और उस रात संन्यासी रिक्त होकर आश्रम लौटे।

पक्षी उड़ गया था… स्वर्ण का पिंजरा भर शेष रह गया था!

पुणे कम्युन में रजनीश की समाधि के शिलालेख पर उन्हीं की इच्छा से यह लिखा गया है :

"ओशो :
कभी नहीं जन्मे, कभी मरे नहीं…
वे बस 11 दिसम्बर 1931 से 19 जनवरी 1990 तक
इस पृथ्वी की यात्रा पर आए थे!"

कुंभ में जो आईआईटीयन बाबा वायरल हुए हैं। वो महाशय यही है इनका नाम हैं अभय सिंह।मुंबई IIT 2008 बैच के एयरोस्पेस इंजीनियर ...
14/01/2025

कुंभ में जो आईआईटीयन बाबा वायरल हुए हैं। वो महाशय यही है इनका नाम हैं अभय सिंह।
मुंबई IIT 2008 बैच के एयरोस्पेस इंजीनियर थे।
सुख सुविधा के सभी तंत्र इनके पास थे फिर एक दिन सब का त्याग कर साधु बन गए।
सही मायनो में एक सच्चा और सफल साधु या सन्यासी वही बन पाता है जिसने अपनी किशोर अवस्था से लेकर जवानी तक सभी तरह के सुखों का भोग किया हो।
वरना वो जरा सी चकाचौंध पाते ही अपना उद्देश्य भूल जाते हैं और जिस संसार का त्याग कर चुके होते हैं उसी के भोग के लिए आतुर रहते हैं।
बुद्ध भी इसीलिए सफल हुए क्योंकि उन्होंने राज सत्ता से लेकर स्वयं की स्त्री का सुख लिया, संतान का सुख लिया फिर एक रात इस माया से मुक्ति पाने के लिए निकल पड़े।

आया दौर फ्लैट कल्चर का,देहरी, आंगन, धूप नदारद।हर छत पर पानी की टंकी,ताल, तलैया, कूप नदारद।।लाज-शरम चंपत आंखों से,घूँघट व...
19/12/2024

आया दौर फ्लैट कल्चर का,देहरी, आंगन, धूप नदारद।
हर छत पर पानी की टंकी,ताल, तलैया, कूप नदारद।।
लाज-शरम चंपत आंखों से,घूँघट वाला रूप नदारद।
पैकिंग वाले चावल, दालें,डलिया,चलनी, सूप नदारद।।
🤨🤨
बढ़ीं गाड़ियां, जगह कम पड़ी, सड़कों के फुटपाथ नदारद।
लोग हुए मतलबपरस्त सब,मदद करें वे हाथ नदारद।।
मोबाइल पर चैटिंग चालू,यार-दोस्त का साथ नदारद।
बाथरूम, शौचालय घर में,कुआं, पोखरा ताल नदारद।।
🤨🤨
हरियाली का दर्शन दुर्लभ,कोयलिया की कूक नदारद।
घर-घर जले गैस के चूल्हे,फुँकनी वाली फूंक नदारद।।
मिक्सी, लोहे की अलमारी,सिलबट्टा, संदूक नदारद।
मोबाइल सबके हाथों में,विरह, मिलन की हूक नदारद।।
🤨🤨
बाग-बगीचे खेत बन गए,जामुन, बरगद, रेड़ नदारद।
सेब, संतरा, चीकू बिकतेगूलर, पाकड़ पेड़ नदारद।।
ट्रैक्टर से हो रही जुताई,जोत-जात में मेड़ नदारद।
रेडीमेड बिक रहा ब्लैंकेट,पालों के घर भेड़ नदारद।।
🤨🤨
लोग बढ़ गए, बढ़ा अतिक्रमण,जुगनू, जंगल, झाड़ नदारद।
कमरे बिजली से रोशन हैं,ताखा, दियना, टांड़ नदारद।।
चावल पकने लगा कुकर में,बटलोई का मांड़ नदारद।
कौन चबाए चना-चबेना,भड़भूजे का भाड़ नदारद।।
🤨🤨
पक्के ईंटों वाले घर हैं,छप्पर और खपरैल नदारद।
ट्रैक्टर से हो रही जुताई,दरवाजे से बैल नदारद।।
बिछे खड़ंजे गली-गली में,धूल धूसरित गैल नदारद।
चारे में भी मिला केमिकल,गोबर से गुबरैल नदारद।।
🤨🤨
शर्ट-पैंट का फैशन आया,धोती और लंगोट नदारद।
खुले-खुले परिधान आ गए,बंद गले का कोट नदारद।।
आँचल और दुपट्टे गायब,घूंघट वाली ओट नदारद।
महंगाई का वह आलम है,एक-पांच के नोट नदारद।।
🤨🤨
लोकतंत्र अब भीड़तंत्र है,जनता की पहचान नदारद।
कुर्सी पाना राजनीति है,नेता से ईमान नदारद।।
गूगल विद्यादान कर रहा,मास्टर का सम्मान नदारद।
जय श्रीराम 🙏🙏

26/11/2024

“काग दही पर जान गँवायो”
एक बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुंचे, जलेबी ली और वहीं खाने बैठ गये।

इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला। हलवाई को बड़ा गुस्सा आया उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा। कौए की किस्मत ख़राब, पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।

– ये घटना देख कवि हृदय जगा। वो जलेबी खाने के बाद पानी पीने पहुंचे तो उन्होंने एक कोयले के टुकड़े से वहां एक पंक्ति लिख दी।

“काग दही पर जान गँवायो”

– तभी वहां एक लेखपाल महोदय, जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे, पानी पीने आए। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा, कितनी सही बात लिखी हैं ! क्योंकि उन्होंने उसे कुछ इस तरह पढ़ा –

“कागद ही पर जान गंवायो”

– तभी एक मजनू टाइप लड़का पिटा-पिटाया सा वहां पानी पीने आया। उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी हैं। काश उसे ये पहले पता होतीं, क्योंकि उसने उसे कुछ यूं पढ़ा था –

“का गदही पर जान गंवायो”
———————————————
इसीलिए संत तुलसीदासजी ने बहुत पहले ही लिख दिया था –

“जाकी रही भावना जैसी,
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”!

्री_राम
ादेव_जय_शिव_शँम्भू
#बजरंगी_ग्रुप #बृजेशतिवारी

 #त्रिपुंड_और_तिलक ....ज्योतिषाचार्य पंडित बजरंगी तिवारी (बृजेश)🔸ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है तो सभी पाप...
20/11/2024

#त्रिपुंड_और_तिलक ....
ज्योतिषाचार्य पंडित बजरंगी तिवारी (बृजेश)

🔸ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है तो सभी पाप नष्ट हो जाते है सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।

🔸ललाट अर्थात माथे पर भस्म या चंदन से तीन रेखाएं बनाई जाती हैं उसे त्रिपुंड कहते हैं।

🔸शैव संप्रदाय के लोग इसे धारण करते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार त्रिपुंड की तीन रेखाओं में से हर एक में नौ-नौ देवता निवास करते हैं।

♦️त्रिपुंड के देवताओ के नाम इस प्रकार हैं-

1- अकार, गार्हपत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, रजोगुण, ऋग्वेद, क्रियाशक्ति, प्रात:स्वन तथा महादेव- ये त्रिपुंड की पहली रेखा के नौ देवता हैं।

2- ऊंकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यंदिनसवन, इच्छाशक्ति, अंतरात्मा और महेश्वर- ये त्रिपुंड की दूसरी रेखा के नौ देवता हैं।

3- मकार, आहवनीय अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, द्युलोक, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तृतीयसवन तथा शिव- ये त्रिपुंड की तीसरी रेखा के नौ देवता हैं।

त्रिपुंड का मंत्र-ॐ त्रिलोकिनाथाय नम:

🔸तिलक के प्रकार :
तिलक कई प्रकार के होते हैं - मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि।

♦️सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।

🔸चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं।

चन्दन के प्रकार👉 हरि चंदन, गोपी चंदन, सफेद चंदन, लाल चंदन, गोमती और गोकुल चंदन।

♦️तिलक लगाने के लाभ

1👉 तिलक करने से व्यक्त‍ित्व प्रभावशाली हो जाता है. दरअसल, तिलक लगाने का मनोवैज्ञानिक असर होता है, क्योंकि इससे व्यक्त‍ि के आत्मविश्वास और आत्मबल में भरपूर इजाफा होता है.

2👉 ललाट पर नियमित रूप से तिलक लगाने से मस्तक में तरावट आती है. लोग शांति व सुकून अनुभव करते हैं. यह कई तरह की मानसिक बीमारियों से बचाता है.

3👉 दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है, जिससे उदासी दूर होती है और मन में उत्साह जागता है. यह उत्साह लोगों को अच्छे कामों में लगाता है.

4👉 इससे सिरदर्द की समस्या में कमी आती है.

5👉 हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है. हल्दी में एंटी बैक्ट्र‍ियल तत्व होते हैं, जो रोगों से मुक्त करता है.

6👉 धार्मिक मान्यता के अनुसार, चंदन का तिलक लगाने से मनुष्य के पापों का नाश होता है. लोग कई तरह के संकट से बच जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है.

7👉 माना जाता है कि चंदन का तिलक लगाने वाले का घर अन्न-धन से भरा रहता है और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है।

किस दिन किस का तिलक लगाये :

यदि वार अनुसार तिलक धारण किया जाए तो उक्त वार से संबंधित ग्रहों को शुभ फल देने वाला बनाया जा सकता है।

🔸सोमवार 👉 सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है तथा इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं। चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं।

🔸मंगलवार 👉 मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है। मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता में विकास होता है।

🔸बुधवार 👉 बुधवार को जहां मां दुर्गा का दिन माना गया है वहीं यह भगवान गणेश का दिन भी है।इस दिन का ग्रह स्वामी है बुध ग्रह। इस दिन सूखे सिंदूर (जिसमें कोई तेल न मिला हो) का तिलक लगाना चाहिए।

🔸गुरुवार 👉 गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है। बृहस्पति ऋषि देवताओं के गुरु हैं। इस दिन के खास देवता हैं ब्रह्मा। इस दिन का स्वामी ग्रह है बृहस्पति ग्रह।गुरु को पीला या सफेद मिश्रित पीला रंग प्रिय है। हल्दी या गोरोचन का तिलक भी लगा सकते हैं।

🔸शुक्रवार 👉शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का रहता है। इस दिन का ग्रह स्वामी शुक्र ग्रह है।हालांकि इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस दिन लाल चंदन लगाने से जहां तनाव दूर रहता है ।

🔸शनिवार 👉 शनिवार को भैरव, शनि और यमराज का दिन माना जाता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है शनि ग्रह। शनिवार के दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिए जिससे भैरव महाराज प्रसन्न रहते हैं।

🔸रविवार 👉 रविवार का दिन भगवान विष्णु और सूर्य का दिन रहता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है सूर्य ग्रह जो ग्रहों के राजा हैं। इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाएं।

देश के कोने कोने से आकर मुंबई में बंसनेवाले हम लोग खुद को पहले मुंबईकर और बाद में महाराष्ट्रीयन बताना शुरू करते है क्युक...
17/07/2024

देश के कोने कोने से आकर मुंबई में बंसनेवाले हम लोग खुद को पहले मुंबईकर और बाद में महाराष्ट्रीयन बताना शुरू करते है क्युकी यहां की संस्कृति इतनी सर्व समावेशक और पवित्र है की आप उस का हिस्सा बन ही जाते है।इसी संस्कृति का अभिन्न अंग है आषाढ़ वारी ! महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में स्थित पंढरपुर में श्रीहरि विष्णु के अवतार विट्ठल और देवी रखुमाई का मंदिर है। हर साल आषाढ़ी एकादशी और कार्तिकी एकादशी की दस से पंद्रह लाख लोग पंढरपुर जाते है। ये हर साल पंढरपुर जाने वाले भक्तों को वारकरी कहा जाता है।ये वारकरी संप्रदाय की अपनी पुरानी परंपरा है । अब ये वारी किस ने शुरू की ये तो हम नही जानते लेकिन संत ज्ञानेश्वर जी के पिता हर साल आषाढ़ और कार्तिक महीने में लोगो को लेकर पंढरपुर जाते थे इतना तो लिखित में है ।मै कुछ नौ सौ साल पहले की बात कर रहा हु।फिर संत ज्ञानेश्वर के दौरान वो और बाकी संतों ने मिल कर इसे बड़ा स्वरूप दिया।हिंदुओ का ये संप्रदाय विराट बनता गया।फिर छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में संत तुकाराम जी ने इस वारी को और बड़ा रूप दिया।ये हिन्दू दर्शन भला कौन सी मुस्लिम सत्ता देख पाती? तो पंढरपुर जाने वाले लोगो पर मुगल और आदिलशाही के सैनिक हमले करने लगे।फिर उन्हे सुरक्षा देने के लिए पहले शिवाजी महाराज और फिर उन के सुपुत्र संभाजी महाराज ने अपनी आर्मी के लोग साथ में भेजना शुरू किया ।

पंढरपुर जाने वाले भक्तजन मतलब वारकरी कोई अमीर घराने के लोग नही है।इन में से अधिकांश किसान है जो खेत मे पहली बारिश के बाद बीज बोकर विठ्ठल दर्शन के लिए निकल जाते है।इन में से अधिकांश लोग अपने अपने गांव खेड़ा से सैंकड़ो किलोमीटर पैदल चल कर आते है। हर साल आते है।भजन ,कीर्तन और शाकाहार का इन के जीवन में बड़ा महत्व है ।वारकरी शराब नही पिता।आठ साल के बच्चे के अस्सी साल का बुजुर्ग पैर छूता है क्युकी वारकरी संप्रदाय में कोई छोटा बड़ा नही है ! किसी की कोई जाति नहीं है।इस संप्रदाय ने हर एक समाज से संत निर्माण किए है ।सब एक दूसरे में श्री हरी को देखते है ! अगर आप धार्मिक हिंदू है या फिर आप धार्मिक हिंदू नही भी है तो भी जीवन में एक बार ये वारी का हिस्सा जरूर बने ।कोई खर्चा नही है।आप के साथ चलने वाले सारे किसान ,मजदूर,सामान्य घर के सारे छोटे बड़े लोग की मिलेंगे।आप को पता नही चलेगा आप को कहा से खाना मिल रहा है।आप चल नही सकते तो आप पीछे गाड़िया चलती है उस में से किसी भी गाड़ी में जाकर विश्राम करे कोई नही रोकेगा! यूरोप,अमरीका में सेटल हो चुकी गरीब घर की महाराष्ट्रीयन पीढ़ी इस वारी का हिस्सा बनने हर साल अपने देश लौट आती है । आप नास्तिक भी है तो एक बार आलंदी से पंढरपुर की वारी कवर करना ।आप आस्तिक बन जायेंगे ! पूरे साल ये वारकरी समाज भजन कीर्तन के जरिए गांव खेड़ा में धर्म को जागृत रखता है ।ये सिस्टम चलती ही रहती है।

सभी श्री हरी विठ्ठल भक्तजनों को आषाढ़ी एकादशी की शुभ कामनाएं 🙏🚩

पुंडलिक वरदे हरी विठ्ठल,श्री ज्ञानदेव तुकाराम
पंढरीनाथ महाराज की जय 🚩🙏

12/02/2024

#नवग्रह_के_अति_सुलभ_उपाय
Everyone
सूर्य को अर्घ्य देने से बेहतर है
उगते सूरज को जी-भर निहारना

मोती पहनने से अच्छा है
चांदनी ओढ़ के सोना
और गर हो सके
चंदा का चकोर ही हो जाना

मंगल दुरुस्त करना हो तो
खून की ज़रूरत की ख़बर लगते ही
दौड़ जाना रक्तदान के लिए अस्पताल की ओर,
और ध्यान रहे
किसी का खून बहाने से पहले
जान लेना उसके लहू का रंग

बुध की बेहतरी के लिए
ज़रूरी नहीं है गाय को देना हरा चारा
बस हरी घास पर नंगे पैर चल लेना कुछ देर

गुरु को मनाना हो
तो घूम आना अपने स्कूल या कॉलेज
रिटायरमेंट की दहलीज़ पर खड़े
किसी टीचर के चेहरे की मुस्कुराहट बन जाना

शुक्र की मेहरबानी चाहिए
तो औरतों के साथ तमीज़ से पेश आना
और हो सके तो उन्हें ज़रूर देना
उनके हक़ की इज्ज़त का वो हिस्सा
जिसका मिलना उन्हें सदियों से बाक़ी रहा है

शनि से रहमत चाहिए
तो बुजुर्गों,कमज़ोरों और मजदूरों पर
थोड़ा रहम करना

राहु पर काबू
रखना हो
तो काबू में रखना अपनी भूख,
हर एक तरह की भूख...
वजह उसका कभी पेट नहीं भरता
जो सिर्फ एक सिर है
आखिर उसका पेट भला भरेगा भी कैसे?

केतु से तो बिल्कुल भी मत डरना
वह तुमसे वो सब करवाएगा
जिससे तुम आजिज़ आ चुके हो
सो बस आजिज़ आ जाना

अपना सारा डर
और
सारे दुराग्रह झटक देना
नवग्रह खुद-ब-खुद बेहतर हो जाएँगे.. मां दुर्गा शक्ति का नवार्ण मंत्र का जाप सुबह शाम पौन घंटा रोज करें सारे ग्रह दोष समाप्त हो

🕉🕉️🕉️   ंक्रांति  ☸️☸️☸️🔴 मकर संक्रांति मनाने के पीछे अनेकों कथाएं/मान्यता हैं.🔶 दो अयन होते हैं, दक्षिणायन और उत्तरायण....
15/01/2024

🕉🕉️🕉️ ंक्रांति ☸️☸️☸️

🔴 मकर संक्रांति मनाने के पीछे अनेकों कथाएं/मान्यता हैं.

🔶 दो अयन होते हैं, दक्षिणायन और उत्तरायण.

🔵 मनुष्यों का एक वर्षा देवताओं का रात्रि सहित एक दिन होता है.

🚩 उत्तरायण को देवताओं का दिन होता है, दिन प्रकाश एवं सकारात्मक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है.

⚫ मकर संक्रांति के ही दिन माता गंगा पृथ्वी पर आई थी एवं इसी दिन गंगापुत्र भीष्म ने प्राण त्यागा था.

◼️ इस दिन भगवान् सूर्य नारायण अपने पुत्र शनिदेव के घर आए थे एवं ज्योतिष में सूर्य देव अपने पुत्र एवं शत्रु शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं.

🦍 पुराणों के अनुसार क्रोधित होकर भगवान् सूर्य ने शनि एवं छाया का घर कुंभ को जला दिया था लेकिन शनि के दो घर है मकर एवं कुंभ, कुंभ के जल जाने पर शनि मकर में रहने लगे.

🐊 यम के समझाने पर सूर्य देव को अपने अपराध का बोध हुआ और शनि से मिलने उनके घर गए, पिता को आया देख शनि देव ने उनका प्रेमपूर्वक स्वागत किया.

🐚 उस समय शनि के घर केवल तिल ही खाने योग्य भोज्य पदार्थ था जिससे उन्होंने अपने पिता का स्वागत किया, अपने पुत्र शनि के सद्व्योहार से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने कुंभ को फिर से बना दिया एवं शनि को वरदान दिया कि वो जब मकर राशि में गोचर करेंगे तो धन-सम्पदा में वृध्दि होगी.

☀ बारह आदित्य है अंशुमान, आर्यमान, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और विष्णु.

🌞 इन्ही बारह आदित्यों का अधिपत्य बारह मास एवं बारह राशियों पर है, मकर पर भग का अधिपत्य है और भग, भाग्य एवं समृध्दि के देवता हैं.

♥️ सूर्य का मकर राशि में गोचर भाग्य, धन-सम्पदा एवं समृद्धि को बढ़ाता है.

🔥 मकर राशि कालपुरुष की कुंडली में दसवे भाव में पड़ती है और दसवे भाव में सूर्य के कारक एवं दसवे भाव में दिगबलि होते हैं.

🧡🧡🧡 ज्योतिष में सूर्य एवं शनि 💙💙💙

🦁 सूर्य पूर्व दिशा के स्वामी हैं और शनि पश्चिम दिशा के स्वामी.

🦇 दोनों विपरीत/सप्तक राशि के स्वामी होते हैं, सूर्य राशि के स्वामी एवं शनि कुंभ राशि के स्वामी हैं.

🦏 दोनों एक दूसरे से विपरीत राशियों में उच्च और नीच के होते हैं, सूर्य मेष राशि में उच्च एवं तुला राशि में नीच के होते हैं और शनि तुला में उच्च और मेष राशि में नीच के होते हैं.

🐏 दोनों विपरीत रंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, सूर्य केशरिया या लाल रंग का प्रतिनिधित्व करते जबकि शनि नीले रंग का प्रतिनिधित्व करते हैं.

🖤 सूर्य आत्मा है, प्रकाश है और जीवन देता है जबकि शनि मृत्यु एवं जीवन के गुणवत्ता का प्रतिनिधित्व करता है.

💛 देना और दी हुई वस्तु को ना मांग पाने की प्रवृत्ति सूर्य देता है, जबकि शनि प्रभावित जातक मांगने में हिचकिचाता नहीं है.

💚 सूर्य आत्मसम्मान को दर्शाता है और शनि विनम्रता का.

🦅 लेकिन सूर्य और शनि दोनों ही दसवे भाव के कारक होते हैं.

🔯 सूर्य और शनि दोनों ही सरकार और जन कल्याण या जनता को दर्शाते हैं.

⚜️ सूर्य और शनि दोनों ही सत्ता एवं उच्च संस्थानों को दर्शाते हैं.

♠️ दोनों ही लोकतंत्र को दर्शाते है, शनि का का झुकाव लोकतंत्र की तरफ ओर ज्यादा रहता है.

♦️ दोनों ही कर्मठ, सरल, ईमानदार और जनसमूह के कार्यरत हैं, बस सूर्य में स्वाभिमान है और शनि में धैर्य.

🐎 सूर्य राजा है और शनि प्रजा, दोनों ही शक्तिशाली है, दोनों ही स्वतंत्र हैं, दोनों ही सिद्धान्तवादी है, दोनों ही प्रयोगात्मक(practical) है और दोनों ही न्याय और दण्ड का अधिकार रखते हैं.

🔱 लेकिन एक सूर्य प्रभावित(dominating) जातक भले ही गरीब हो, वो एक झोपड़ी में रह लेगा और उसे ही अपना राजभवन समझेगा, लेकिन किसी से मांगेगा नहीं.

🤘आप सभी को मकर संक्रांति, पोंगल, खिचड़ी, संक्रान्ति उत्सव, बीहू एवं उत्तरायण की हार्दिक शुभकामनाएं 🌞 🌄🌅

काफी साधु संतो के विचार, ज्ञान को सुनकर,ग्रहण करके एक बात बढ़ी गहरी उतरी हैं जीवन में।की अगर व्यक्ति सच्चे दिल से प्रार्...
04/01/2024

काफी साधु संतो के विचार, ज्ञान को सुनकर,ग्रहण करके एक बात बढ़ी गहरी उतरी हैं जीवन में।
की अगर व्यक्ति सच्चे दिल से प्रार्थना कर दें तो वह जरुर पूर्ण हो जाती हैं।
संत कहते हैं किसी को माया देखनी हैं ईश्वर भक्ति की तो, आप अगर किसी भी प्रकार कि समस्या में हैं एकांत में जाएं और 15 मिनिट नाम जप करें उनका जिन्हें आप मानते हैं। आपकों तत्काल लाभ दिखेगा।
इसकी पुष्टि ऐसे होगी की जैसे आप यह सब करेंगे आपका शरीर, मन, आत्मा, दिमाग सब हल्का हो जाएगा।
अगर लाभ नहीं होता तो इसका मतलब साधन में गलती नही हैं, हम ही गलत मार्ग में चल रहे हैं।
पंडित बजरंगी तिवारी (बृजेश)

 #मानसिक_रोग_और_ज्योतिषवात पित्त और कफ के विकार से उत्पन्न अथवा इनमे से कोई दो के आपस मे मिलने से ..या ऊपर नीचे होने से ...
01/10/2023

#मानसिक_रोग_और_ज्योतिष

वात पित्त और कफ के विकार से उत्पन्न अथवा इनमे से कोई दो के आपस मे मिलने से ..या ऊपर नीचे होने से बनने वाले रोगों को शारीरिक रोग कहा जाता है
(त्रिदोष imbalance)

जातक पारिजात के अनुसार ग्रहों की भी मानसिक स्तिथिया होती है

ये 10 तरह की होती है

1- दीप्त
2- प्रमुदित
3-स्वस्थ
4-शांत
5- शक्त
6-प्रपीडित
7-दीन
8-खल
9-विकल
10-भीत

महर्षि पतंजलि ने भी चित्त के क्लेशो के पांच कारण बताए है
1- अविधा - यथार्थ का उचित ज्ञान ना होना

2- अस्मिता- अहंकार के अनुचित प्रयोग को अस्मिता कहते है

3-राग- किसी चीज़ से अत्यधिक आसक्ति को राग कहते है

4- द्वेष - अपने को दैनिय स्तिथि में देखने से दूसरों के प्रति ईर्ष्या की भावना

5- अभिनिवेश- हमेशा म्रत्यु के भय का आभास होना ,

6-आलस- चित्त और शरीर मे भारीपन हो जाना आलस्य है

मानस दुःखज- इस तरह का उन्माद Enemies के डर से ,बहुत ज्यादा अभिलाषाओं के पूरा ना होने से पैदा होता है

आदि कारण मानसिक रोगों के या मानसिक कमजोरी के कारण बनते है

मानसिक रोगों के बारे में कहा गया है कि क्रोध, हर्ष, और शोक आदि आवेगों से उतपन्न रोग मानसिक रोग कहलाते है

जड़ता

चंद्रमा+शनि+गुलिक केंद्र में हो तो व्यक्ति जड़बुध्दि होता है

5वे भाव मे शनि+राहु हो तो भी व्यक्ति जड़ बुध्दि होता है

देखा ये भी गया है कि चर लग्न हो 6th लॉर्ड और राहु देखते हो मंगल 11वे भाव मे हो तो अभिचार यानी (मंत्रादि प्रयोग) से व्यक्ति के शत्रु उसे पागल करने की कोशिश करते है l

कम्जोर चंद्रमा शनि के साथ 12वे भाव मे हो.

कम्जोर चंद्रमा शनि के साथ हो और मंगल उसे देखता हो.

चन्द्र +शनि की युति हो और राहू उसे देखता हो.

मंगल चौथे भाव मे हो और शनि उसे देखता हो.

6ठे भाव का स्वामी व शनि दोनो एक साथ लगन मे हो.

मंगल+बुध 6ठे या 8वे भाव मे हो.

मंगल 3रे भाव मे हो और पापी ग्र्हो से प्रभावित हो.

कन्या लगन मे शनि और राहू एक साथ होने पर.

चंद्रमा और बुध एक साथ केंद्र मे हो और पाप ग्रहो से द्रस्त हो

इंसान स्वस्थ मन और बुध्दि से ही जीवन की यात्रा सम्पन्न कर सकता है और अगर ये ही डिस्टर्ब हो जाये तो जिंदगी अधूरी सी रह जाती है ।

कंस को मारने के बाद भगवान श्रीकृष्ण कारागृह में गए और वहां से माता देवकी तथा पिता वसुदेव को छुड़ाया।तब माता देवकी ने श्र...
10/09/2023

कंस को मारने के बाद भगवान श्रीकृष्ण कारागृह में गए और वहां से माता देवकी तथा पिता वसुदेव को छुड़ाया।
तब माता देवकी ने श्रीकृष्ण से पूछा, "बेटा, तुम भगवान हो, तुम्हारे पास असीम शक्ति है, फिर तुमने चौदह साल तक कंस को मारने और हमें यहां से छुड़ाने की प्रतीक्षा क्यों की?"
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "क्षमा करें आदरणीय माता जी, क्या आपने मुझे पिछले जन्म में चौदह साल के लिए वनवास में नहीं भेजा था।"
माता देवकी आश्चर्यचकित हो गईं और फिर पूछा, "बेटा कृष्ण, यह कैसे संभव है? तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?"
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "माता, आपको अपने पूर्व जन्म के बारे में कुछ भी स्मरण नहीं है। परंतु तब आप कैकेई थीं और आपके पति राजा दशरथ थे।"
माता देवकी ने और ज्यादा आश्चर्यचकित होकर पूछा, "फिर महारानी कौशल्या कौन हैं?"
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "वही तो इस जन्म में माता यशोदा हैं। चौदह साल तक जिनको पिछले जीवन में मां के जिस प्यार से वंचित रहना पड़ा था, वह उन्हें इस जन्म में मिला है।"

जय श्रीकृष्ण 🙏

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