इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए।
दो दिन की ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए।
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम,
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए।
आग़ाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए,
अंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हम से पूछिए।
जलते दियों में जलते घरों जैसी ज़ौ कहाँ,
सरकार रौशनी का मज़ा हम से पूछिए।
वो जान ही गए कि हमें उन से प्यार है,
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हम से पूछिए।
हँसने का शौक़ हम को भी था आप की तरह,
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हम से पूछिए।
हम तौबा कर के मर गए बे-मौत ऐ 'ख़ुमार,'
तौहीन-ए-मय-कशी का मज़ा हम से पूछिए।
ख़ुमार बाराबंकवी
02/09/2025
बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है।
बचा है जो तुझ में मेरा हिस्सा निकालना है।
ये रूह बरसों से दफ़्न है तुम मदद करोगे,
बदन के मलबे से इस को ज़िंदा निकालना है।
नज़र में रखना कहीं कोई ग़म-शनास गाहक,
मुझे सुख़न बेचना है ख़र्चा निकालना है।
निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा,
अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है।
ये तीस बरसों से कुछ बरस पीछे चल रही है,
मुझे घड़ी का ख़राब पुर्ज़ा निकालना है।
ख़याल है ख़ानदान को इत्तिलाअ' दे दूँ,
जो कट गया उस शजर का शजरा निकालना है।
मैं एक किरदार से बड़ा तंग हूँ क़लमकार,
मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है।
उमैर नजमी
01/09/2025
खँडहर बचे हुए हैं, इमारत नहीं रही।
अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही।
कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आप,
जो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही।
हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया,
हम पर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही।
मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा,
या यूँ कहो कि बर्क़ की दहशत नहीं रही।
हमको पता नहीं था हमें अब पता चला,
इस मुल्क में हमारी हक़ूमत नहीं रही।
कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे,
कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही।
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग,
रो-रो के बात कहने की आदत नहीं रही।
सीने में ज़िन्दगी के अलामात हैं अभी,
गो ज़िन्दगी की कोई ज़रूरत नहीं रही।
दुष्यंत कुमार
31/08/2025
"ईंधन "
रेल के डिब्बे में तिल रखने को जगह नहीं थी। नौजवान लड़के-लड़कियों से कम्पार्टमेंट खचाखच भरा पड़ा था। नियमित मुसाफ़िर जगह के लिए मारे-मारे फिर रहे थे। गाड़ी चल दी।
डिब्बे में फँसे हुए एक अजनबी, किंतु नियमित यात्री ने कुछ नवयुवकों से पूछा, ”कहाँ जा रहे हैं आप सब?”
“राजधानी।”
“क्यों?”
“रैली में।”
“कौन-सी पार्टी की रैली है?”
“किसी के पास उत्तर नहीं था।
“आपके पास टिकट है?”
“हमें नहीं मालूम, हमारा नेता जाने।”
“कहाँ है आपका नेता?”
“हमें नहीं मालूम।”
प्रश्नकर्त्ता आश्चर्यचकित था। तभी एक दूसरे सामान्य सहयात्री ने प्रश्नकर्त्ता का समाधान करते हुए उसे समझाया--”भाई, ईंधन को क्या मालूम कि वह किस भट्टी में झोंका जा रहा है? लकड़हारा ले जा रहा है। भट्टीवाला सम्हाल लेगा।”
रैली के स्वयंसेवक राष्ट्रीय गीत गाने में व्यस्त हो गये।
रेलगाड़ी राजधानी की ओर भागी जा रही थी।
बालकवि बैरागी
31/08/2025
दो चार गाम राह को हमवार देखना।
फिर हर क़दम पे इक नई दीवार देखना।
आँखों की रौशनी से है हर संग आईना,
हर आइने में ख़ुद को गुनहगार देखना।
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी,
जिस को भी देखना हो कई बार देखना।
मैदाँ की हार जीत तो क़िस्मत की बात है,
टूटी है किस के हाथ में तलवार देखना।
दरिया के इस किनारे सितारे भी फूल भी,
दरिया चढ़ा हुआ हो तो उस पार देखना।
अच्छी नहीं है शहर के रस्तों से दोस्ती,
आँगन में फैल जाए न बाज़ार देखना।
निदा फ़ाज़ली
30/08/2025
"संवेदनाओं का डिजिटल संस्करण"
2 मार्च 2021
पिताजी बहुत बीमार हैं। आप सभी की दुआओं की बहुत ज़रूरत है।
(अस्पताल में लेटे बीमार पिता जी की फोटो के साथ उसने फेसबुक पर स्टेटस अपडेट किया।)
3 मार्च 2021
पिताजी की हालत लगातार बिगड़ रही है। तन, मन, धन से जितना कर सकता हूँ, सब कर रहा हूँ। "
(इस बार उसने अपने थके निराश चेहरे की फोटो के साथ स्टेटस अपडेट किया।)
5 मार्च 2021
पिताजी नहीं रहे। मैं अपनी सब कोशिशें करके भी हार गया। मेरा संसार लुट गया।
(श्मशान से पिता की चिता के आगे अपने आँसुओं से भरे चेहरे के साथ उसने स्टेटस एक बार फिर अपडेट किया)
16 मार्च 2021
पिताजी की आत्मा की शांति के लिए बहुत बड़ी पूजा रखी और 51 पंडितों को भोज कराया।
(हार चढ़ी पिताजी की फोटो के सामने कुछ पंडित खाना खा रहे हैं और उन्हें खुद खाना परोसते हुए की फोटो के साथ इस बार का स्टेटस अपडेट हुआ।)
शाम ढले वह अपनी प्रोफाइल पर आए ढेरों कमेंट पढ़ रहा था, जिसमें उसे एक बेहद संवेदनशील आज्ञाकारी बेटे के खिताबों से नवाज़ा गया था।
साथ वाले कमरे में माँ खाँस-खाँस के दोहरी होती हुई अब भी इंतज़ार कर रही है कि बेटा खत्म हुई दवाइयाँ फिर से कब ला कर देगा। पति के खाली बिस्तर की तरफ देखते हुए उसकी आँखें भीग गई हैं।
काँपती आवाज़ में माँ ने बेटे को आवाज़ दी, दवाइयों की गुहार की। बेटे ने मुँह बनाया और झिड़कते हुए कहा-"बहुत व्यस्त हूँ मैं। पापा के मरने के बाद जो इतना तामझाम फैला है, अभी वह तो समेट लूँ। समय मिलता है तो ला कर दूँगा।"-कह कर एक बार फिर से वह फोन में व्यस्त हो गया। पाँच मिनट में नया स्टेटस अपडेट हुआ।
'पिताजी के बाद अब माँ की हालत बिगड़ने लगी है। हे ईश्वर! मुझ पर रहम करो। मुझमें अब और खोने की शक्ति नहीं बची है।'
डॉ. सुषमा गुप्ता
30/08/2025
ख़ंजर चमका रात का सीना चाक हुआ।
जंगल जंगल सन्नाटा सफ़्फ़ाक हुआ।
ज़ख़्म लगा कर उस का भी कुछ हाथ खुला,
मैं भी धोका खा कर कुछ चालाक हुआ।
मेरी ही परछाईं दर ओ दीवार प है,
सुब्ह हुई नैरंग तमाशा ख़ाक हुआ।
कैसा दिल का चराग़ कहाँ का दिल का चराग़,
तेज़ हवाओं में शो'ला ख़ाशाक हुआ।
फूल की पत्ती पत्ती ख़ाक पे बिखरी है,
रँग उड़ा उड़ते उड़ते अफ़्लाक हुआ।
हर दम दिल की शाख़ लरज़ती रहती थी,
ज़र्द हवा लहराई क़िस्सा पाक हुआ।
अब उस की तलवार मिरी गर्दन होगी,
कब का ख़ाली 'ज़ेब' मिरा फ़ितराक हुआ।
ज़ेब ग़ौरी
29/08/2025
तुमने तो मोहब्बत की तक़दीर बदल डाली | Ana Dehlvi | Hamara Manch Kavi Sammelan and Mushaira
29/08/2025
ख़याल उसी की तरफ़ बार बार जाता है।
मिरे सफ़र की थकन कौन उतार जाता है।
ये उस का अपना तरीक़ा है दान करने का,
वो जिस से शर्त लगाता है हार जाता है।
ये खेल मेरी समझ में कभी नहीं आया,
मैं जीत जाता हूँ बाज़ी वो मार जाता है।
मैं अपनी नींद दवाओं से क़र्ज़ लेता हूँ,
ये क़र्ज़ ख़्वाब में कोई उतार जाता है।
नशा भी होता है हल्का सा ज़हर में शामिल,
वो जब भी मिलता है इक डंक मार जाता है।
मैं सब के वास्ते करता हूँ कुछ न कुछ 'नज़मी',
जहाँ जहाँ भी मिरा इख़्तियार जाता है।
अख़्तर नज़्मी
27/08/2025
अड़े हैं साहिब डिग्री अपनी छिपाने को | पैरोडी गीत | Hamara Manch | Yashdeep Kaushik Yash | Parody Song
26/08/2025
वोट की चोरी से या हेरा फेरी से | पैरोडी गीत | Yashdeep Kaushik Yash | Hamara Manch | Parody
25/08/2025
छिपाई किसने सच्चाई? हमें नहीं है पता।
दी किसने झूठी गवाही? हमें नहीं है पता।
सरे बाजार वो करता किसी को भी डंडा,
है चोर या वो सिपाही? हमें नहीं है पता।
ये ज़िन्दगी का सफ़र कैसे मोड़ पर आया
कि ज़ह्र लें या दवाई?हमें नहीं है पता।
लड़ाई रोज ही आपस में करते दो भाई,
ये आग किसने लगाई? हमें नहीं है पता।
नहीं है मूर्ख जो सब जान के बना पागल,
भले दे लाख दुहाई हमें नहीं है पता।
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नमस्कार। This is Official Facebook profile of renowned Haryanvi Poet Yashdeep Kaushik “Yash” - कवि यशदीप कौशिक 'यश'। Kavi Yashdeep Kaushik "Yash" is a Versatile Poet (All genres of Poetry), Lyricist, Storyteller and Motivational Speaker. By Qualification and Profession he is a Computer Engineer and Certified ITIL and Project Management Professional (PMP) with keen focus on Information Technology Service Management.
Kavi Yashdeep Kaushik “Yash” has been on various reality shows on several popular national channels from time to time. Since past many years, he has been performing as a Hasya Kavi and Manch Sanchalak all over the country and has made a unique identity as “YO YO Haryanvi”, among his poetry friends and fans. He turned to his love for poetry and literature into his passion and a mission when he started reciting poems and stories at various events and also over various digital platforms. Besides having performed in hundreds of Kavi Sammelans across various state geographies of India, Kavi Yashdeep Kaushik “Yash” has been specially recognized for the foundation of “Hamara Manch” a globally recognized Poetry Platform dedicated to preserve and enrich Indian Literature, Education and Culture.
कवि यशदीप कौशिक 'यश' हास्य व्यंगय रस के कवि व सिद्ध मंच संचालक हैं | बाल्यकाल कक्षा 6 से ही यशदीप के हृदय में काव्य के बीज अंकुरित होने लगे थे और 12वीं कक्षा तक पहुँचते पहुँचते यशदीप स्थानीय गोष्ठियों व सम्मेलन मंचों पर काफी सक्रिय हो चूका था। 12वीं के बाद इंजीनियरिंग में दाखिले के बाद यशदीप काव्य लेखन से धीरे धीरे दूर होता चला गया और कंप्यूटर इंजीनियरिंग के बाद नौकरी पेशे व गृहस्थी की व्यस्तता ने इस दूरी को और भी बढ़ा दिया था। परन्तु दो दशक के बाद नियति ने एक बार फिर से यशदीप को कविता लेखन की तरफ आकर्षित किया तो हिंदी कवि सम्मेलन मंचों को यशदीप कौशिक 'यश' के रूप में एक नया कवि मिल गया।
माँ शारदे की असीम अनुकम्पा एवं बड़ों के आशीर्वाद से इसके बाद फिर कवि यशदीप कौशिक 'यश' ने पीछे मुद कर नहीं देखा। आज यशदीप कौशिक 'यश' एक ऐसे ऊर्जावान कवि हैं जो हिंदी कवि सम्मेलन की दुनिया में हास्य व्यंग्य कवि एवं सफल मंच संचालक के रूप में स्थापित है व कवि सम्मेलन एवं मुशायरों के अदबी माहौल में किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं। कवि सम्मेलन की दुनियां का एक सीधा, सच्चा एवं सरल, मंच और कविता के प्रति ईमानदार नाम है कवि यशदीप कौशिक 'यश', जिनकी काव्य प्रस्तुति आज भी लोगो के ह्रदय पटल पर अपनी छाप छोड़ देती है। कवि यशदीप कौशिक 'यश' की सरस वाणी व सहज व्यवहार युवाओं को बहुत ही प्रेरित करती हैं, व सोशल मीडिया पर लाखों लोग कवि यशदीप कौशिक 'यश' को बेहद पसंद करते हैं!
देश और देश की सीमाओं के पार जहाँ जहाँ हिंदी बोलने वाले लोग रहते हैं वे कवि यशदीप कौशिक 'यश' को बार बार सुनना चाहते हैं |यशदीप कौशिक 'यश' मंचीय राजनीति से हटकर अपनी ख़ुद की ज़मीन तैयार करने वाले एक सीधे, सच्चे एवं सरल साहित्यकार हैं जो काव्यमंचों पर काव्यपाठ करने के साथ - साथ काव्य लेखन में भी निरन्तर सक्रिय हैं। वर्तमान हिन्दी कवि सम्मेलनो एवं मुशायरों की दुनिया मे अपनी विविद्यात्मक व्यंगय शैली, हृदय को गहरे तक छूने वाली ग़ज़लों, और ओजपूर्ण कविताओं से स्रोताओं के अन्तः करण पर प्रभाव कायम करने वाले कवि यशदीप कौशिक 'यश' आज हिन्दी कवि सम्मेलनो मे सर्वाधिक पसंद किए जाने वाले कवियो मे से एक हैं|
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